क्या भारत विश्व की सैन्य महाशक्तियों के समक्ष मिसाइल और नाभिकीय शक्ति के रूप में तुलनीय है?
जब से रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध प्रारम्भ हुआ है, जनमानस में यह प्रश्न कौंध रहा है। प्रश्न यह है की क्या भारत अमेरिका, रूस या चीन की तरह दुनिया में कहीं भी मार करने की क्षमता रखता है?
उत्तर है: हां।

हमारी सूर्य मिसाइल और परमाणु बम की ज़द के बाहर कोई नहीं: आत्म निर्भर है भारत।
यह सच है कि भारत को शस्त्रास्त्र, मिसाइल, लड़ाकू विमान, युद्ध पोतवाहक, सबमरी्न्स और अन्य सैन्य सामग्री में जितना आत्मनिर्भर होना चाहिए था उतना तो नहीं है। लेकिन दो ऐसे सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र हैं जिसमें भारत पूर्णतः आत्मनिर्भर है: मिसाइलें और परमाणु (नाभिकीय) बम।
भारत के पास लगभग 150 से 200 के बीच परमाणु बम (Atom/nuclear bomb) होने का अनुमान विदेशी रक्षा विशेषज्ञ लगाते हैं। भारत को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए क्या-क्या नहीं किया विकसित देशों ने। नॉन प्रॉलीफेरेशन ट्रीटी (एन पी टी) और सीटीबीटी (कोम्प्रेहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी) जैसे नयाचर (प्रोटोकॉल) और संगठन बनाकर इनपर हस्ताक्षर करने के लिए भारत सरकार पर बहुत दबाव डाला गया था, जिसपर भारत ने कभी हस्ताक्षर नहीं किया। 1998 में (अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में) भारत ने परमाणु परीक्षण के बाद परमाणु बमों का निर्माण किया। लेकिन परमाणु बम अपने आप में कुछ भी नहीं है अगर उसका अचूक डेलिवरी सिस्टम न हो, यानी मिसाइलें। और मिसाइलें भी कुछ महत्वपूर्ण नहीं रह जायेंगी अगर उन्हें प्रक्षेपित करने का जल, थल और वायु में सक्षम प्लेटफार्म न हो। ये तीनों ही आवश्यक है और सक्षमता की कड़ी तभी पूरी होगी जब ये तीनों हो। सौभाग्य से भारत इन तीनों में सक्षम ही नहीं पूर्णतः आत्मनिर्भर और विश्व स्तर की तकनीक से सुसज्जित है।
मिसाइलों के विकास और निर्माण के क्षेत्र में भारत ने विश्व स्तर की सफलता प्राप्त की है और न तो किसी से कम है न किसी पर निर्भर। दुनिया की सशस्त्र सेनाओं में परंपरागत युद्ध हथियार (राइफलें, मशीनगनें, मोर्टार, आर्टिलरी/तोपें, टैंक, राकेट/कम दूरी की क्रूज मिसाइल इत्यादि) तो होते ही हैं लेकिन सभी के पास बैलिस्टिक मिसाइलें नहीं होती और होती भी है तो उस तरह की नहीं जिस तरह भारत के पास है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की अधिकतर मिसाइलें भारत में ही इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत डी आर डी ओ द्वारा पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से विकसित और निर्मित की गई है। इनका औद्योगिक उत्पादन भारत डाइनेमिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है।
इनको विकसित करना इसलिए आवश्यक था कि दुनिया के विकसित देशों के पास जो मिसाइल टेक्नोलॉजी थी, वह उसे भारत को देने से मना कर चुके थे। इस टेक्नोलॉजी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्रायोजेनिक इंजन और इंधन देने से दुनिया के उन सभी देशों ने मना कर दिया था जिनके पास यह थी: यानि अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन (चीन से तो मांगा भी नहीं जा सकता था)। रुस, जो भारत का परम मित्र माना जाता है, देना चाहता था पर अन्य देशों के दबाव के कारण नहीं दे सका।
लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने अपनी प्रतिभा और अथक परिश्रम से न सिर्फ क्रायोजेनिक इंजन और उसके लिए इंधन बनाया बल्कि पूरी तरह से स्वदेशी विश्व स्तर की मिसाइल टेक्नोलॉजी देश को प्रदान किया। यह मिसाइलें हमारे देश की न सिर्फ शान है बल्कि हमारे सुरक्षा और प्रतिकार की अंतिम गारंटी है। इसमें स्ट्रैटेजिक (रणनीतिक) और टैक्टिकल (युद्धनीतिक) दोनों तरह की मिसाइलें शामिल है। आइए देखते हैं कि भारत के पास कौन-कौन सी मिसाइलें है:
सूर्य मिसाइल:
चौक गए ना आप? जी हां इस मिसाइल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और जानेंगे तो और चौंक जाएंगे। इसकी आवश्यकता भारत के सशस्त्र बलों ने सरकार को 1993 में ही संसदीय रक्षा समिति के माध्यम से दे दी थी और इसी के आधार पर 1994 में ही भारत के वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव बनाकर सरकार को दे दिया था। श्री पी वी नरसिंह राव के नेतृत्व में थोड़ा बहुत कार्य हुआ था लेकिन उसके बाद ये ठंडे बस्ते में चला गया। असली कार्य श्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल में इसपर 1998 में फिर आरंभ हुआ और तब से स्वतंत्र रूप से चलता रहा। मोदी सरकार के आने के बाद 2014 से फिर इसपर बहुत तेजी से कार्य हुआ। आइए जानते हैं इस मिसाइल के बारे में।
सूर्य मिसाइल भारत की सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली रणनीतिक (strategic) मिसाइल है। इसकी मारक क्षमता में संपूर्ण पृथ्वी है। इसकी रेंज 10000 से 12000 किलोमीटर है, जबकि पृथ्वी की परिधि लगभग 40000 किमी है। इस तरह अगर भारत के अलग-अलग भागों से इसे फायर किया जाए तो यह दुनिया के किसी भी हिस्से को तबाह कर सकती है। ध्यान रहे भारत की उत्तर-दक्षिण लम्बाई 3200 किमी नहीं बल्कि 5000 किमी के आसपास है: अंडमान-निकोबार का सबसे दक्षिणी बिन्दु लदाख के उत्तर बिन्दु से लगभग 5000 किमी दूर है। इस प्रकार यह 12000+5000=17000 किमी उत्तर और इतना ही दक्षिण (पूरब-पश्चिम भी) दिशा में पहुंच सकती है। इस प्रकार दुनिया का लगभग हर भाग इसकी चपेट में है। यह मिसाइल मूलतः परमाणु बम को डेलिवर करने के लिए बनायी गयी है, हांलांकि परम्परागत हथियार भी यह डेलिवर कर सकती है।
यह मिसाइल एक बार में 9-12 लक्ष्य भेद सकती है (मतलब 9-12 परमाणु बम एक साथ ले जा सकती है), क्योंकि यह एम आर आई वी/ MIRV ( Multi Independently targetable Re-entry Vehicle) है। सही अर्थों में यह भारत की अकेली अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल या आई सी बी एम (inter Continental Ballistic Missile) है। इस मिसाइल का वजन लगभग 55000 किलोग्राम, लम्बाई 40-70 मीटर और चौड़ाई (diameter) 1.1 मीटर है। इसकी गति 10-12 मैक (न्यूनतम) से 29 मैक (अधिकतम) तक है। यानी यह ध्वनि से 10-12 गुना से 29 गुना तेज चलती है। इस प्रकार धरती के किसी भी कोने में यह अधिकतम 30 से 40 मिनट के बीच पहुंच सकती है। बस एक घंटे में कम की बात है, खेल खत्म हो सकता है।
इस मिसाइल के विषय में भारत सरकार ने कभी आधिकारिक रूप से कोई घोषणा नहीं की लेकिन विश्व के रक्षा विशेषज्ञों का विचार है कि यह मिसाइल बनकर तैयार हो चुकी है और इसका परीक्षण अग्नि-6 (Agni-VI) के नाम से किया जा चुका है। भारत इस मिसाइल का परीक्षण पूरी रेंज (10000-12000 Km) के लिए नहीं कर सकता क्योंकि 10000 से 12000 किलोमीटर तक फायर करने के लिए भारत के पास ही नहीं, दुनिया के किसी भी देश के पास न तो भूमि है न ही समुद्र। दुनिया के सबसे बड़े देश रूस के पास भी, जो यूरोप से लेकर एशिया तक फैला है, इतनी लम्बाई नहीं है। रूस 9000 किमी लम्बा है। इसलिए सूर्य मिसाइल का परीक्षण, अग्नि-6 (Agni-VI) के नाम से, 6000 से 8000 किलोमीटर तक की रेंज के लिए किया जा चुका है। इस परीक्षण से 12000-16000 किमी रेंज की सारी आवश्यकतायें पूरी हो जाती है।
भारत सरकार आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं करती क्योंकि दुनिया में जो भारत के मित्र देश हैं वह अनावश्यक रूप से नाराज हो सकते हैं। भारत द्वारा अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) बनाने का बहुत गंभीर विरोध हुआ था। इस टेक्नोलॉजी के नियंत्रण के लिए मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम (MTCR) नाम का संगठन बनाया गया था। इनका कहना था कि भारत को इतनी रेंज की मिसाइल की आवश्यकता क्या है जबकि उसकी शत्रुता पाकिस्तान और चीन के अलावा किसी से नहीं है। और इन देशों तक मार करने के लिए इतनी रेंज की आग सी बी एम की आवश्यकता नहीं है। सी टी बी टी में प्राविधान था कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों (अमेरिका, चीन, फ्रांस, इंग्लैंड और रूस, जिनके पास ICBM पहले से ही थे) को छोड़कर यह टेक्नोलॉजी किसी और देश के पास नहीं होनी चाहिए और न विकसित होने देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों के बाद भारत अकेला देश है जिसके पास यह मिसाइल है। ऐसा अनुमान है की चीन ने यह टेक्नोलॉजी उत्तर कोरिया को भी अनधिकृत तौर पर दी है। सूर्य मिसाइल को विशेष प्रकार के रेल या ट्रक से फायर किया जा सकता है। इस विशेष प्रकार के रेल या ट्रक को टीईएल (Transporter-Erector-Launcher) कहा जाता है।