
पांच राज्यों में चुनाव के जो परिणाम आए हैं वह चौकानेवाले नहीं बल्कि अपेक्षा और पूर्व अनुमानों के अनुरूप ही है। लेकिन यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नए मानदंड और नए मूल्यों की स्थापना कर रहे हैं। इन चुनावों ने परंपरागत कई तिलिस्मों को तोड़ा है। इनमें से प्रमुख पर हम क्रमवार विचार करेंगे लेकिन पहले कुछ आंकड़े देख लेते हैं।
इन पांच राज्यों में से चार में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और चारों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार को बरकरार रखा है, उत्तर प्रदेश में में कुछ कम सीटों के साथ अन्य सब राज्यों में अधिक सीटों के साथ। उत्तर प्रदेश (274/403), मणिपुर (32/60), गोवा (20/40) और उत्तराखंड (47/70) में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार को बरकरार रखा है जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली है। जहां जनता ने अधिकतर निर्दलीयों और छोटे-छोटे दलों को नकारा है और बड़े राजनीतिक दलों के साथ अपने भाग्य को जोड़ा है वही दलबदलू को भी सबक सिखाया है। उत्तर प्रदेश में सिर्फ तीन सीट सीटों को छोड़कर सारी सीटें या तो भारतीय जनता पार्टी के पास है या तो समाजवादी पार्टी के पास है। बसपा और कांग्रेस लगभग समाप्त हो गई है क्योंकि बसपा को सिर्फ एक और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली हैं। जहां समाजवादी पार्टी ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाई है वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट का प्रतिशत बढ़ाया है जो कि सही अर्थों में एक महान उपलब्धि है। 1985 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई भी पदासीन सरकार दुबारा चुनी गई है और स्वतंत्र भारत के इतिहास में उत्तर प्रदेश में पहली बार हुआ है जब एक ही व्यक्ति लगातार दो बार मुख्यमंत्री बनेगा। 1951 से लेकर और 70 के दशक तक कांग्रेस की सरकारें बनती रही है लेकिन वही मुख्यमंत्री दोबारा चयनित नहीं हुआ है। इस प्रकार योगी भाजपा ने दो नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
यही बात उत्तराखंड में हुई है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहते हुए भी भारतीय जनता पार्टी फिर से शासन में आई है। सरकार विरोधी भावनाओं का कोई भी असर इन दोनों राज्यों में नहीं दिखाई देता है। मणिपुर और गोवा में भी भारतीय जनता पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है और दोनों राज्यों में वह अपने बलबूते पर सरकार बनाने में सक्षम है। लेकिन यहां सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के विषय में हम कुछ महत्वपूर्ण बातों का विश्लेषण करेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह सामने आई है कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जातिवाद को लगभग मिटा दिया है। जातिवाद के नाम पर वोट मांगने वाले “एम वाई” यानी मुस्लिम-यादव का युग्म (कांबिनेशन) हो चाहे बसपा का दलित वोट बैंक हो या छोटे-छोटे दलों के जाति आधारित संगठन, सभी सिकुड़ते दिखाई दिए हैं। जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को डराया जा रहा था वहां भारतीय जनता पार्टी ने असाधारण रूप से सफलता पाई है। कहा यह जा रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले 18% जाट भारतीय जनता पार्टी से नाराज हैं और अधिकतर वोट नहीं देंगे। लेकिन जिस तरह से सीटें प्राप्त हुई है उससे स्पष्ट है कि जाट और जाटव (अनुसूचित जाति) साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी को ही वोट दिया है। इसी प्रकार दूसरा मिथ्या प्रचार किया जा रहा था कि ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी से नाराज हैं और इस बार भारतीय जनता पार्टी को उनके वोट का प्रतिशत कम मिलेगा। लेकिन अभी जो परिणाम सामने आए हैं वह ठीक इसके विपरीत है क्योंकि जिन स्थानों पर ब्राह्मण बाहुल्य है वहां पर भारतीय जनता पार्टी की जीत लगभग सुनिश्चित हुई है। वहां लगभग हर जगह भारतीय जनता पार्टी विजय हुई है।
इस चुनाव में जो सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है वह है मुस्लिम मतदाताओं के बीच। महिला मुस्लिम मतदाताओं ने बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया है। यह संभव है कि वह अपने परिवार की सलाह के विरुद्ध ऐसा की हों। परन्तु उनका ऐसा करने का कारण बहुत ही स्पष्ट है। ट्रिपल तलाक और हलाला जैसी कुप्रथाओं से मुस्लिम महिलाओं को निजात दिलाने वाले नरेंद्र मोदी को मुस्लिम महिलाएं एक महान नेता के रूप में देखती हैं, जिन्होंने उनके व्यक्तिगत जीवन में महान सकारात्मक बदलाव किया। इतना ही नहीं चुनाव के जो आंकड़े आए हैं उससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि यादव मतदाताओं का एक बड़ा प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी की ओर उन्मुख हुआ है। गैर जाटव शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब पहले से ही भारतीय जनता पार्टी के साथ थे लेकिन इस बार वोट के पैटर्न से स्पष्ट है कि जाटव मतदाताओं ने बसपा को त्याग कर बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को मतदान किया है। भारतीय जनता पार्टी को, जिसे अभी कुछ वर्ष पूर्व तक सिर्फ बनिया और ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था आज सभी वर्गों की पार्टी बन चुकी है। विरोधी इसकी छवि को अपर कास्ट की पार्टी की तरह प्रस्तुत कर करना चाहते थे जो पूरी तरह से अब ध्वस्त हो चुका है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों को सही अर्थों में साकार करते हुए नरेंद्र मोदी ने सामाजिक समरसता का एक बहुत ही मजबूत ताना-बाना खड़ा किया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह वोट नरेंद्र मोदी को दिया गया है क्योंकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री स्वयं अपना चुनाव हार गए हैं लेकिन उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी बहुत प्रचंड बहुमत से जीती है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और पिछड़ों के बड़े नेता केशव प्रसाद मौर्या अपना चुनाव हार गए हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में वापस आई है। इसी प्रकार गोवा में मनोहर परिकर के सुपुत्र के दूसरी पार्टी में जाने के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत की है जबकि वहां पर कोई भी महत्वपूर्ण नेता प्रदेश स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं था। इससे स्पष्ट है कि लोगों ने स्थानीय नेताओं की बजाय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को वोट दिया है। मणिपुर जैसे राज्य में जहां कांग्रेस के समय भी अधिकतर क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार बनती थी वहां पर भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया है। इससे यह पता चलता है कि पूरे देश में चाहे वह पूर्वोत्तर राज्य हो या गोवा जैसा तटीय राज्य सब जगह राष्ट्रवादी सोच तेजी से विकसित हो रही है। जाति, धर्म और क्षेत्र की जो सीमाएं बनायी गती थीं वह सिमट रही है, टूट रही हैं।
इस चुनाव के जो भी परिणाम आए हैं उससे एक बात बहुत ही स्पष्ट है कि भारत एक सशक्त राष्ट्र ही नहीं एक सशक्त समाज के रूप में उभर रहा है, जहां जाति और क्षेत्र की सीमाएं कमजोर हो रही हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है और मैं समझता हूं कि भारत को विश्व गुरु बनने और एक महाशक्ति बनने के लिए ऐसी घटनाएं राष्ट्रहित का कार्य करेंगी।