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In which direction is Russia-Ukraine heading? Will it be the cause of third world war?

रूस-यूक्रेन किस दिशा में बढ़ रहा है? कहीं यह तृतीय विश्व युद्ध का कारण तो नहीं बनेगा?

24 फरवरी 2022 को इतिहास में कहीं तृतीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने की तिथि के रूप में तो याद नहीं किया जाएगा? आज से लगभग 35 दिन पूर्व, 24 फरवरी को स्थानीय समयानुसार प्रातः चार बजे रूस ने यूक्रेन की सार्वभौमिकता और राष्ट्रीय अखंडता का उल्लंघन करते हुए रूस-यूक्रेन सीमा को पार कर यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया। रूस की खुफिया एजेंसियों ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह आश्वासन दिया था कि 10 से 15 दिन के बीच युद्ध पूरी तरह से हमारे पक्ष में होगा और हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर लेंगे। लेकिन यह अनुमान सत्य सिद्ध नहीं हुआ। 35 दिनों के बाद भी मारियोपॉल को छोड़कर यूक्रेन का कोई भी बड़ा शहर रूस के पूरी तरह कब्जे में नहीं आ पाया। इस इस युद्ध में यूक्रेन को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और कई शहर बुरी तरह से नष्ट कर दिए गए हैं। परंतु रूस यह दावा नहीं कर पा रहा है कि जिस लक्ष्य को लेकर वह यूक्रेन में घुसा था वह पूरा हुआ है। यूक्रेन की राजधानी कीव में बहुत नुकसान हुआ है इसके अतिरिक्त खारकीव और मारियापॉल को भी बहुत नुकसान पहुंचा है।

यूक्रेन के महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाने नेस्तनाबूद कर दिए गए हैं। पश्चिमी यूक्रेन स्थित चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर को भी काफी नुकसान हुआ है और उस पर इस समय रूस का कब्जा है। रूस ने तो स्वीकार नहीं किया है लेकिन विश्वसनीय सूत्रों से जो समाचार है उसके अनुसार रूस की सेना को भी भारी क्षति उठानी पड़ी है। जिस प्रकार से रूस प्रतिदिन आक्रमण की सघनता और हथियारों की “लीथलिटी” को बढ़ाता जा रहा है, इससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि राष्ट्रपति पुतिन किसी सीमा तक कुंठित हैं और किसी भी हालत में किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह धमकी भी दी है कि यदि रूस की भौगोलिक सीमाओं और उसकी अखंडता को खतरा हुआ तो वह परमाणु बम का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं रहेंगे। इन्हीं कारणों से इतने दिन हो गए अमेरिका के नेतृत्व में नाटो का कोई भी सदस्य इस युद्ध में सीधे तौर पर भाग लेने से कतरा रहा है।

ध्यातव्य है की रूस ने पहली बार “किंजल” हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का प्रयोग किया है। दुनिया में ऐसी क्रूज़ मिसाइल किसी अन्य देश के पास नहीं है। यह मिसाइल ध्वनि की गति से पांच गुना तेज चल सकती है। धरती के वातावरण में रहकर इस गति से चलने वाला कोई दूसरा पिंड नहीं है। रुस के सहयोग से बनी हमारी “ब्रह्मोस” ध्वनि की गति से तीन गुना तेज चलती है। बैलिस्टिक मिसाइलों की गति “किंजल” से अधिक होती है परन्तु वह वातावरण में नहीं, निर्वात में इस गति को प्राप्त करती है। इसके अतिरिक्त रूस के पास पूरी पृथ्वी पर कहीं भी मार करने की शक्ति है। उसके पास लगभग 6257 परमाणु बम और लगभग 900 आईसीबीएम यानि अंतर्महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें, जिनकी मारक रेंज 10,000 से 12,000 किमी हैं। यह पूरी पृथ्वी को तहस-नहस करने के लिए आवश्यकता से अधिक है। लगभग इतना ही अमेरिका के पास भी है। अतः परिणाम की कल्पना की जा सकती है।

स्थिति जिस प्रकार बद से बदतर होती जा रही है, दुनिया के कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस बात की काफी संभावना है कि यह युद्ध कहीं तृतीय विश्वयुद्ध का रूप न ले ले। युद्ध की इस स्थिति के लिए रूस जितना उत्तरदायी है उससे कम उत्तरदायी अमेरिका नहीं है। इस बात को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम यूक्रेन और रूस के युद्ध के कारणों की समीक्षा करें। युद्ध का प्रमुख कारण यूक्रेन द्वारा नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन में सम्मिलित होने की जिद है। यह बात महत्वपूर्ण है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद जिस प्रकार वारसा पैक्ट के देश (रूस के सहयोगी देश) असंगठित होकर टूट गए थे उसी प्रकार नाटो को भी अपने संगठन को या तो खत्म कर देना चाहिए था या तो उसका विस्तार रोक देना था। लेकिन अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने ऐसा नहीं किया। नाटो यानी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के देश नाटो का विस्तार वारसा पैक्ट देशों तक ही नहीं बल्कि पूर्व सोवियत संघ के देशों में करते रहे। इस क्रम में नाटो ने एस्टोनिया, लाटविया और लिठुआनिया को अपने में सम्मिलित कर लिया।

यह बात ध्यान रखने योग्य है कि 4 अप्रैल 1949 को नाटो का जब गठन हुआ था उस समय नाटो में मात्र 12 देश ही थे। उसके बाद 1952 से लेकर 1988 तक मात्र चार और देश शामिल हुए। इस प्रकार नाटो की कुल सदस्य संख्या 16 हो गई। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद बहुत तेजी से वारसा पैक्ट के देश, जो कि सोवियत संघ ब्लॉक के थे, नाटो में सम्मिलित होने लगे। अमेरिका सहित नाटो के देशों ने वारसा पैक्ट के देशों को नाटो में सम्मिलित करने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणाम यह हुआ कि वारसा पैक्ट के 14 देश नाटो में शामिल हुए। इस स्थिति में रूस की चिंता बढ़ना स्वाभाविक था। लेकिन जब यूक्रेन ने घोषणा की कि वह नाटो में शामिल होगा तो रूस के सब्र का बांध टूट गया। क्योंकि यूक्रेन का नाटो में शामिल होने का मतलब था कि नाटो देशों का मास्को से मात्र 450 किलोमीटर दूर होना, जो रूस कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। रूस चाहता था कि यूक्रेन एक तटस्थ देश रहे और रूस और नाटो देशों के बीच एक “बफर स्टेट” का काम करें। लेकिन यूक्रेन की जनता का और उसके नेतृत्व का झुकाव नाटो में शामिल होने की तरफ बहुत प्रबल रूप से बना रहा। इससे उपजी छटपटाहट को कम करने के लिए 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्राइमिया क्षेत्र पर आक्रमण कर उसे अपने में शामिल कर लिया। क्राइमिया काला सागर में दक्षिण पूर्व में यूक्रेन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। काला सागर में अपनी नौसेना को प्रभावी बनाने के लिए रूस ने क्राइमिया पर आक्रमण किया और यूक्रेन से छीन कर अपने देश का हिस्सा बना लिया। लेकिन रूस की निगाह में उसकी समस्या का समाधान अभी भी नहीं हुआ था।

यूक्रेन के डॉनबॉस क्षेत्र में रूसी मूल के लोग लगभग 30% है। रूस के इस आक्रमण के साथ यूक्रेन ने रूसी मूल के अपने नागरिकों के प्रति दुर्व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया। उसका मानना था कि यह सभी रूस समर्थक है। जिसके कारण उस क्षेत्र में यूक्रेन के प्रति विद्रोह पैदा हो गया कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें स्वयं रूस का भी काफी हाथ है। जब रूस यूक्रेन को नाटो में शामिल होने से रोक नहीं पा रहा तो योजना के तहत वह चाहता था कि यूक्रेन के उत्तरी और उत्तर पूर्वी भाग डॉनबॉस्क एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया जाए जिससे यदि यूक्रेन नाटो में सम्मिलित भी हो तो रूस और यूक्रेन (यानी नाटो देशों) के बीच एक “बफर स्टेट” बना रहे।

रूस की चिंताएं निराधार नहीं है, क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस का विस्तार नहीं हुआ बल्कि नाटो का विस्तार बहुत तेजी से हुआ। आदर्श स्थिति यह थी कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो शीत युद्ध नाटो और सोवियत संघ के बीच प्रारंभ हुआ था, सोवियत संघ के विघटन के बाद उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन हुआ इसका उल्टा ही। इसी कारण रूस की चिंताएं बढ़ गई और रूस आक्रामक मुद्रा में आ गया । यहां जो मानचित्र है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह से नाटो ने अपना विस्तार पूर्व सोवियत संघ के वारसा पैक्ट के देशों में और उसके बाद सोवियत संघ के देशों में फैलाया है। जो स्थितियां बनी है उसमें यदि रूस-यूक्रेन युद्ध तृतीय विश्व युद्ध का कारण बनता है तो उसके लिए सिर्फ रूस को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। इस विनाश के लिए अमेरिका और नाटो के देश भी उत्तरदायी होंगे। यह युद्ध इतना आसान नहीं होगा। उसका कारण यह है कि नाटो का एक देश तुर्की स्वयं रूस से सहानुभूति रखता है और दुनिया की दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति और तीसरी सैन्य शक्ति, चीन, इस विवाद में रूस के साथ है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण देश है जो रूस के साथ हैं। स्वयं रूस की सेना दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिशाली सेना है।

कुछ भी हो मानवीय मूल्यों, शांति और स्वतंत्रता की बात करने वाले यूरोप के देश ही प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध और यदि हुआ तो; तृतीय विश्व युद्ध का कारण बनेंगे।

Saras Tripathi

Saras Tripathi is a multifaceted personality having expertise in multiple domains of human endeavors. Excellence has been the hallmark of his accomplishments. He served in the Indian Army for eight years as Commissioned Officer (last rank as Major), A Deputy Secretary (Media) to the Government of India, Human Resource Manager in Central PSU and Manager (Security and Vigilance)/ Airport Manager at IGI airport New Delhi. He last served as Commandant of Raxa Academy of GMR Group (a certified “centre of excellence”) until he decided to quit the position (and all jobs forever) and dedicate himself to motivate youth/professionals and fellow brethren to achieve what they dream of. He left the highly paid job and prestigious position to pursue his passion for freelance-writing and publishing books of national importance. As a motivational speaker he has been training people to achieve their cherished goal in life. Education: He graduated from the University of Allahabad in English Literature, Philosophy and Ancient history/Culture followed by MA (Philosophy) in the year 1989. He has Bachelor and Masters’ degrees in Journalism (B. Journ. and M. Journ) from Sagar University, and PG Diploma in HRD from Pondicherry University. He has been a graded artist at All India Radio. Trainer and Speaker: He has delivered hundreds of lectures/PPT on a variety of subjects relating to self-growth, personality development and topics of national importance. Author: He has authored two books; one each in English (“Holy Sinners: Search of Kashmir”) and Hindi (“Kashmir Mein Atankwaad: AnkhonDekhaSach”) and several articles published in various newspapers/journals. Occasionally, he has been at AIR for discussions and talks.He regularly writes on contemporary subjects for various newspapers/magazines and Social Media platforms. Pragya Matth Publications is a publication house established by authors to protect the author community from unscrupulous, unethical and exploitative commercial publishers. Pragya Matth has been established by an ex-army officer, Major Saras Tripathi After his own bitter experience as an author, with publishers and their unethical business dealings. The publication is managed by a group of authors, academicians and professionals.