You are currently viewing ढाई मोर्चे के युद्ध में आधे मोर्चे पर बैठे शत्रुओं की पहचान”
आधे मोर्चे पर बैठे शत्रुओं की पहचान

ढाई मोर्चे के युद्ध में आधे मोर्चे पर बैठे शत्रुओं की पहचान”

भारत के #शहीद #रक्षाध्यक्ष (सी डी एस) #जनरल #बिपिन #रावत को शत-शत नमन क्योंकि पहली बार आपने “आधा मोर्चा” लगाकर बैठे शत्रुओं को चुनौती दी। जनरल बिपिन रावत के असामयिक निधन के साथ भारत माता ने न सिर्फ एक महान सैनिक सपूत खोया है बल्कि एक महान रणनीतिकार और शत्रुओं की असली पहचान कर लेने वाला एक भविष्य द्रष्टा भी खो दिया है। जनरल बिपिन रावत अपने बहुत से कार्यों के लिए जाने जाएंगे। लेकिन यहां मैं उनके दो सबसे महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालना चाहूंगा जो उन्हें बाकी किसी भी सेनाधिकारी/सेनाध्यक्ष या रणनीतिकार से अलग करता है-

एक, उनके द्वारा दिया गया “ढाई मोर्चे के युद्ध” का सिद्धांत।

दो, वर्टिकल कमांड स्ट्रक्चर (Vertical Command Structure) की बजाय थिएटराइजेशन/ थियेटर कमांड के सिद्धांत का प्रतिपादन और क्रियान्वयन।

तो पहले ढाई मोर्चे का युद्ध:

मित्रों इस विषय पर आगे बढ़ने के पहले मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि मेरे द्वारा लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व लिखी गई इस पोस्ट को जरुर पढ़ें, जिसका लिंक मैं यहां दे रहा हूं। यह पोस्ट जनरल बिपिन रावत के इसी वक्तव्य के बाद लिखी गई थी कि ‘अगर इस बार युद्ध हुआ तो भारत को “ढाई मोर्चों” पर लड़ना पड़ेगा’ ये ढाई मोर्चे कौन से हैं?

https://www.facebook.com/100003110469744/posts/2913641578749496/

एक चीन, दूसरा पाकिस्तान और जो आधा मोर्चा है वह भारत के अंदर ही है। डेढ़ वर्ष पहले जो बात उन्होंने कही थी और जिसके आधार पर मैंने पोस्ट लिखी थी वह बिल्कुल सच प्रमाणित हुई है। देश के संरक्षक (guardian of the nation) की भूमिका में बैठे इस सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित जनरल बिपिन रावत के दुर्घटना में मृत्यु के बाद जिस तरह की पोस्ट कुछ देशद्रोहियों ने लिखी है वह भारत के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी हो न हो, यह अवश्य सिद्ध हो गया है कि जनरल रावत “आधे मोर्चे” के विषय में बिल्कुल सही थे। ऐसा लगता है भारत के अंदर कुछ “चीन” और कुछ “पाकिस्तान” पल रहे हैं जिनका विनाश करना आवश्यक है। इस देश में दो तबके ऐसे हैं जो भारतीय सेना (और राष्ट्रवाद) के विरुद्ध हमेशा ही ज़हर उगलते रहते हैं। पहला है कम्युनिस्ट और दूसरा है इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट यानि जिहादी। क्योंकि इनके एजेंडे को डिस्मेंटल करने के लिए, नष्ट करने के लिए सेना को ही लगाया जाता है और सेना ही सक्षम है। छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और पूर्वोत्तर के जंगलों में कम्युनिस्टों की राष्ट्र द्रोही “नक्सली सेना” लगी है और कश्मीर, बंगाल और केरल जैसे स्थानों पर इस्लामिक जिहादियों की। इनका मुख्य उद्देश्य भारत के टुकड़े-टुकड़े करना है। इन्हीं के आपसी व्यभिचार से “टुकड़े टुकड़े गैंग” के मुर्गे निकलते है।

मैं अपने इस लेख के साथ दो तस्वीरें लगा रहा हूं। कहा जाता है की एक तस्वीर कई लाख शब्द कहती है। पहली तस्वीर में आप देखिए कि देश में रोहिंग्या राक्षसों को स्थायी रूप से बसाने के समर्थन में प्रदर्शन के दौरान किस तरह से यह इस्लामिक जिहादी मुंबई स्थित अमर जवान ज्योति पर तोड़फोड़ कर उसे लात मार रहा है, नाम है अब्दुल कादिर मोहम्मद अंसारी। जहां भारत का राष्ट्रपति अपना सिर झुकाता है उस स्थान पर यह व्यक्ति (और इस जैसे अनेक) अपमानजनक तरीके से तोड़ रहा है। देश के बलिदानों के प्रतीक चिन्ह पर इस तरह का अपमान किसी भी देशद्रोह और राजद्रोह से कम नहीं है। ऐसे लोगों को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। सरकार को ऐसे लोगों से निपटने के लिए कठोर कानून बनाना चाहिए और उन्हें कम से कम आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए।

दूसरी तस्वीर में जो यह सीधी सादी शक्ल में राक्षस दिखाई दे रहा है यह भी एक इस्लामिक जिहादी है, नाम है जव्वाद ख़ान। अभी कल ही राजस्थान के टोंक जिले की पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया है। जनरल जनरल रावत की मृत्यु पर इसने जिस तरह की अपमानजनक टिप्पणी की थी उसको यहां लिखना उस वीर सपूत का दोबारा अपमान करना है। इस जिहादी की फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम तथा अन्य सोशल मीडिया अकाउंट को देखने से पता चलता है कि यह पूरी तरह से राष्ट्रद्रोह में शामिल है: आईएसआई और तालिबानों का समर्थक, भारत-द्रोही, गजवा-ए- हिन्द और दार-उल-इस्लाम का स्वप्नदर्शी। लेकिन दुखद पहलू यह है कि हमारी न्याय व्यवस्था इसे शीघ्र ही बेल पर छोड़ देगी। यह फिर से अपने देशद्रोह में लिप्त तो हो जाएगा। जनरल रावत ने जो बात कही थी वह अक्षरशः सिद्ध हो रही है। अगर भारत के साथ पड़ोसियों का कभी युद्ध हुआ तो हमें एक नहीं, दो नहीं “ढाई” मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा- पश्चिमोत्तर में एक मोर्चा पाकिस्तान के साथ और पूर्वोत्तर में दूसरा मोर्चा चीन के साथ, और भारत के अंदर आधा मोर्चा इन देशद्रोहियों के साथ। ऐसे समय में राष्ट्र भक्तों का जागृत होना बहुत आवश्यक है। हर कार्य सरकार नहीं करेगी नागरिकों का कर्तव्य नागरिकों को ही पूरा करना चाहिए।

जनरल रावत के जाने से जो दूसरी बड़ी क्षति हुई है वह है थियेट्राइजेशन आफ कमांड। अभी तक भारत की सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंग अपने कमांड स्ट्रक्चर में ही कार्य करते थे उनमें कोआपरेशन और सिनर्जी होती थी लेकिन कमांड स्ट्रक्चर अपने-अपने सेना के अंगो का ही होता था। अब नए डॉक्ट्रिन के अनुसार, जिसे अमेरिका और चीन पहले से ही फॉलो कर रहे हैं, भारत भी थिएटर कमांड की ओर बढ़ रहा है और इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनरल बिपिन रावत के ऊपर थी। सर्वोच्च नेतृत्व यानी केबिनेट कमिटी आन सिक्योरिटी और प्रधानमंत्री से लगातार और सघन सलाह के बाद इसका निर्माण किया जा रहा था/है। इसके अनुसार भारत को चार (पांच भी हो सकता है) थिएटर कमांड में बांटा जाना था जिसमें से दो थिएटर कमांड का प्रमुख स्थल सेना अधिकारी, तीसरे का जल सेना अधिकारी और चौथे का वायुसेना अधिकारी को होना था/है। इसका विभाजन इस आधार पर किया गया था कि जिस थिएटर में जो सैन्य बल प्रभावी यानी डोमिनेंट है थिएटर कमांड उसके पास ही होनी चाहिए। जैसे भारत के दक्षिण में समुद्र होने के कारण भारत की नौसेना का रोल सबसे बड़ा है इसलिए दक्षिणी थियेटर कमान का प्रमुख वाइस-एडमिरल रैंक (लेफ्टिनेंट जनरल के बराबर) का ऑफिसर को होना था जिसके अंतर्गत वायुसेना और थलसेना के क्रमशः एयर वाइस मार्शल और मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों के अंदर अनेक फार्मेशन होने थे/है। इसी तरह से पश्चिमोत्तर और पूर्वोत्तर में थल सेना का प्रभाव अधिक है इसलिए इन दोनों क्षेत्रों में थिएटर कमांड का प्रमुख सेना अधिकारी जो कि लेफ्टिनेंट जनरल रैंक का हो होना तय हुआ था/है। स्ट्राइक फार्मेशंस की कमांड एयर फोर्स के हाथ में होनी है जो कि भारत के भारत भूमि में डेप्ट में यानी कि मध्य भारत में कहीं होना था इनका कार्य आवश्यकता पड़ने पर।

इस प्रकार जनरल बिपिन रावत भारतीय रणनीति में एक बहुत बड़े बदलाव का नेतृत्व कर रहे थे। उनके असामयिक निधन से भारत को अपूरणीय क्षति हुई है। हालांकि भारतीय सशस्त्र सेनाओं (Indian Armed Forces) में सक्सेशन प्लेन हमेशा बहुत ही रॉबस्ट रहता है इसलिए वहां का प्रबंधन इस प्रकार होता है कि किसी एक व्यक्ति के जाने से संगठन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव (adverse impact) ना होने पाए। अब सरकार को यह तय करना है कि अगला रक्षाध्यक्ष यानि सीडीयस कौन हो? इस समय तीनों सेनाध्यक्षों में सबसे अधिक वरिष्ठ जनरल नरवणे हैं। लेकिन अनौपचारिक रूप से यह तय किया गया था कि रक्षाध्यक्ष का पद रोटेशनल होगा, जिसमें एक बार थल सेना फिर वायु सेना और जल सेना के प्रमुख होंगे।

अच्छी बात है कि सरकार ने ऐसे कोई नियम नहीं बनाए हैं। अतः सरकार के पास ना तो कोई बाध्यता है और ना ही किसी नियम में बंध कर सीडीएस की नियुक्ति करनी है। जनरल रावत आपने हमें “ढाई मोर्चे के युद्ध” का सिद्धांत और उसके प्रति जागरूक करके सजग बना दिया है, हम इन देशद्रोहियों को अब अच्छी तरह पहचानने लगे हैं।

जय हिंद‌।

Saras Tripathi

Saras Tripathi is a multifaceted personality having expertise in multiple domains of human endeavors. Excellence has been the hallmark of his accomplishments. He served in the Indian Army for eight years as Commissioned Officer (last rank as Major), A Deputy Secretary (Media) to the Government of India, Human Resource Manager in Central PSU and Manager (Security and Vigilance)/ Airport Manager at IGI airport New Delhi. He last served as Commandant of Raxa Academy of GMR Group (a certified “centre of excellence”) until he decided to quit the position (and all jobs forever) and dedicate himself to motivate youth/professionals and fellow brethren to achieve what they dream of. He left the highly paid job and prestigious position to pursue his passion for freelance-writing and publishing books of national importance. As a motivational speaker he has been training people to achieve their cherished goal in life. Education: He graduated from the University of Allahabad in English Literature, Philosophy and Ancient history/Culture followed by MA (Philosophy) in the year 1989. He has Bachelor and Masters’ degrees in Journalism (B. Journ. and M. Journ) from Sagar University, and PG Diploma in HRD from Pondicherry University. He has been a graded artist at All India Radio. Trainer and Speaker: He has delivered hundreds of lectures/PPT on a variety of subjects relating to self-growth, personality development and topics of national importance. Author: He has authored two books; one each in English (“Holy Sinners: Search of Kashmir”) and Hindi (“Kashmir Mein Atankwaad: AnkhonDekhaSach”) and several articles published in various newspapers/journals. Occasionally, he has been at AIR for discussions and talks.He regularly writes on contemporary subjects for various newspapers/magazines and Social Media platforms. Pragya Matth Publications is a publication house established by authors to protect the author community from unscrupulous, unethical and exploitative commercial publishers. Pragya Matth has been established by an ex-army officer, Major Saras Tripathi After his own bitter experience as an author, with publishers and their unethical business dealings. The publication is managed by a group of authors, academicians and professionals.