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आज़ादी का अमृत महोत्सव: राष्ट्रीय ध्वज के 75 वर्ष

आज़ादी का अमृत महोत्सव: राष्ट्रीय ध्वज के 75 वर्ष

किसी भी राष्ट्र का राष्ट्रीय ध्वज वस्त्र का एक टुकड़ा या रंगों का एक समायोजन नहीं होता। राष्ट्रीय ध्वज का एक-एक तंतु देश के बलिदानों से संरक्षित होता है। राष्ट्रध्वज में रंग की एक-एक बूंद देश के सैनिकों के रक्त और बलिदानों से रक्षित होती है। किसी भी देश का राष्ट्र ध्वज मात्र राष्ट्रीय प्रतीक नहीं होता वरन उस देश का इतिहास, भूगोल और संस्कृति का प्रतिनिधित्व भी करता है। राष्ट्रीय ध्वज किसी भी राष्ट्र का गौरव होता है। दुनिया भर में किसी देश की पहचान उसके राष्ट्रीय ध्वज से होती है। किसी भी अंतर्राष्ट्रीय समारोह या कार्यक्रम में उन सभी देशों के ध्वज लगे होते हैं जो उसमें भाग ले रहे होते हैं। हमारी सीमाओं पर जहां राष्ट्र ध्वज फहराता है वहां वह स्वयं यह उद्घोषणा करता है-
यह भूमि हमारी है। इस भूमि पर और इस सीमा तक, हमारी संप्रभुता है। जो मुझे झुकाना चाहेगा या हटाना चाहेगा उसे हमारी संप्रभुता की रक्षा कर रहे सैनिकों का सामना करना पड़ेगा जो मेरी सुरक्षा अपने रक्त और प्राणों से करेंगे।”

राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

आज से लगभग 100 वर्ष पहले 1921 में बापू (महात्मा गांधी) ने सबसे पहले एक “स्वराज-ध्वज” की आवश्यकता पर लिखा था। बापू ने अपने “यंग इंडिया” समाचार पत्र में लिखा था कि हमारे स्वराज आंदोलन का एक “ध्वज” होना चाहिए। उनके एक शिष्य लाला हंसराज ने बापू को सलाह दी कि बापू हमारे “स्वराज ध्वज” में हमारा चरखा भी होना चाहिए। बापू के एक दूसरे शिष्य पिंगली वेंकैया ने कहा कि बापू ध्वज को डिजाइन करने का काम तो मैं स्वयं करूंगा। पिंगली वेंकैया आंध्र प्रदेश के एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इस प्रकार 1921 में कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले पिंगली वेंकैया द्वारा इस ध्वज की डिजाइन प्रस्तुत की गई। लेकिन इसको सबसे पहले 13 अप्रैल 1923 को फहराया गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड को याद करते हुए नागपुर में एक प्रोसेशन निकाला गया। जिसमें इस ध्वज को “स्वराज” के ध्वज के रूप में फहराया गया। इस ध्वज में प्रारंभ में सबसे ऊपर सफेद और फिर हरा और फिर लाल रंग था। बाद में इसी ध्वज में परिवर्तन करके ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग स्थापित किया गया। बीच में बापू का सर्वप्रिय चरखा सफेद पट्टी के बीचों-बीच लगाया गया। इस ध्वज का सबसे पहले प्रयोग कांग्रेस के 1931 के अधिवेशन में किया गया। ध्यान देने की बात यह है कि चरखे का रंग भी सफेद पट्टी में नेवी ब्लू ही था।

जब अंग्रेजों ने यह निर्णय लिया कि 15 अगस्त 1947 को वह हमारे देश को आजाद कर देंगे तो इस विषय पर बहुत गंभीरता से विचार होने लगा कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज क्या और कैसा होना चाहिए। इसके लिए हमारे कई बड़े नेताओं की एक समिति बनाई गई जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे। यह वही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद थे जो बाद में हमारे देश के पहले राष्ट्रपति हुए। समिति में उनके अलावा मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायडू, सी राजगोपालाचारी के एम मुंशी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर थे। कहा जाता है इस कमेटी ने सनातन संस्कृति के शाश्वत भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में संस्तुत किया था, किन्तु कुछ लोगों के विरोध के कारण इसे बदलना पड़ा। 14 जुलाई 1947 को यानि हमारी स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक महीने पहले इस कमेटी ने यह निर्णय लिया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज वही होगा जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय ध्वज है लेकिन उसमें थोड़ा सा परिवर्तन किया जाएगा ताकि पार्टी का और राष्ट्रध्वज अलग अलग हों।
साथ ही साथ राष्ट्रीय ध्वज ऐसा हो जिसमें हमारी बहुरंगी संस्कृति का समावेश हो। इसलिए अभी तक सफेद पट्टी पर जो चरखा था उसे हटाकर वहां पर सम्राट अशोक का धर्मचक्र चिन्ह लगा दिया गया। सम्राट अशोक ने अपने अभिलेखों के आधार स्तम्भ पर बहुत ही महान प्रतीक विकसित किया था, जिसमें चार सिंह चार दिशाओं में मुंह करके बैठे हुए हैं और जिनकी पीठ एक दूसरे से सटी हुई है। इन चारों सिंहों के नीचे एक आधार स्तम्भ पर चक्र बना हुआ है, जिसमें 24 तीलियां यानी स्पोक्स हैं। यह बिल्कुल ही गोलाकार है और एक पहिए की तरह है इसे ही धर्मचक्र कहते हैं, क्योंकि यह प्रगति और न्याय का प्रतीक है। राष्ट्र ध्वज में चरखे को हटाकर इस धर्मचक्र को सफेद पट्टी के बीचों-बीच रख दिया गया। चरखा भी नेवी ब्लू कलर का था और यह धर्म चक्र भी नेवी ब्लू कलर में रखा गया। इस प्रकार हमारे राष्ट्रीय ध्वज को अपना अंतिम आकार प्राप्त हुआ।
तिरंगे के तीनों रंगों में एक अनुपात है। अगर हमारा राष्ट्रीय ध्वज 3 मीटर लंबा है तो वह 2 मीटर चौड़ा होगा। या ऐसे कह सकते हैं कि यदि वह 3 मीटर लंबा है तो 2 मीटर ऊंचा होगा। यानी हमारा राष्ट्रीय ध्वज हमेशा 3 गुणे 2 के अनुपात में होता है। पट्टियों की लंबाई 3 गुना और उनकी चौड़ाई कुल मिलाकर 2 गुना। तीनों पट्टियां बिल्कुल बराबर होनी चाहिए। इन तीनों पट्टियों की लंबाई और चौड़ाई एक दूसरे के बिल्कुल बराबर होती है। नाम तो तिरंगा है लेकिन इसमें कुल चार रंग होते हैं। इसमें गाढ़ा नीला रंग (नेवी ब्लू कलर) भी होता है। फिर भी इसको तिरंगा ही कहते हैं क्योंकि जो मुख्य तीन पट्टियां हैं उनमें तीन ही रंग है। धर्म चक्र की 24 तीलियां दिन के 24 घंटे का प्रतिनिधित्व करती है। इसका मतलब यह होता है कि हम 24 घंटे जागृत और कार्यरत हैं। यह जागृति और कार्य शीलता का प्रतीक है।

ध्वज संहिता
राष्ट्रीय ध्वज को जैसे चाहे वैसे न तो प्रयोग कर सकते हैं और न ही पहन सकते हैं। इसको कहीं भी पहनने या धारण करने का एक नयाचार (प्रोटोकोल) है जिसे ध्वज संहिता या “फ्लैग कोड” कहते हैं। हमें अपने राष्ट्रीय ध्वज का प्रयोग उसी फ्लैग कोड के अनुसार ही करना होता है। राष्ट्रीय ध्वज सब के शरीर या पार्थिव शरीर पर नहीं लिपटाया जाता। फ्लैग कोड में इसके प्रयोग का विस्तार से वर्णन है। यह सिर्फ उनके पार्थिव शरीर पर चढ़ाया जाता है जिन्होंने राष्ट्र के लिए बलिदान किया हो, त्याग किया हो, यह हमारे वीर सैनिकों के शव पर लिपटाया जाता है, उन महान नागरिकों या नेताओं के शव पर भी उनकी मृत्यु के बाद रखा जाता है, जिन्होंने हमारे देश के लिए त्याग और बलिदान किया है। जिन लोगों का अन्तिम संस्कार “राजकीय सम्मान” से किये जाने की घोषणा सरकार करती है, उनके शव को भी राष्ट्र ध्वज में लिपटाया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज में लिपटा हुआ शरीर किसी भी बलिदानी का सबसे बड़ा सम्मान है। हमारे कितने ही वीर सैनिकों ने इस तिरंगे की शान में अपने को बलिदान कर दिया।

राष्ट्रीय ध्वज के प्रयोग के लिए सबसे पहले 1950 में कानून बनाया गया था जिसे “एम्ब्लेम्स एंड नेम्स (प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट 1950” कहते हैं। यह कानून बताता है कि हमारे ध्वज का अनुचित प्रयोग नहीं करना चाहिए और क्या क्या ध्वज का अनुचित प्रयोग माना जाएगा। लेकिन यह कानून अपने में पूर्ण नहीं था। इसलिए 1971 में इस कानून में बदलाव किया गया और एक दूसरा कानून बनाया गया जिसे कहते हैं “प्रीवेंशन आप इनसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971″। फिर इन दोनों कानूनों को मिलाकर 2002 में “द फ्लैग कोड आफ इंडिया, 2002” बनाया गया। 2002 के इस फ्लैग कोड आफ इंडिया में अभी तक राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित जितने भी कानून थे और परंपराएं थी उन सब को सम्मिलित कर लिया गया। यह कानून दो हिस्सों में बटा हुआ है। जिसमें पहले भाग में हमारे राष्ट्रीय ध्वज के बारे में, उसके रंग उसके माप (डायमेंशन), उसके समानुपात (प्रपोर्शन) को बताता है जो कि एक छोटा सा भाग है। जबकि दूसरा भाग काफी बड़ा है जो हमारे राष्ट्रीय ध्वज के प्रयोग के तरीकों को बताता है कि किस तरह से राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश के बाहर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में, कार के ऊपर, हेलीकॉप्टर या हवाई जहाज के ऊपर, राष्ट्रीय महत्व के भवनों इत्यादि पर कैसे लगाया जाएगा। इसके अलावा यह भी बताता है कि जब राष्ट्रीय शोक होगा तो राष्ट्रीय ध्वज किस तरह से लगाया जाएगा। राष्ट्रीय ध्वज को सार्वजनिक समारोहों में किस तरह से फहराया जाएगा और क्या क्या सावधानियां बरतनी होगी। इस प्रकार फ्लैग कोड 2002 राष्ट्र ध्वज के प्रयोग के विषय में एक संपूर्ण दिशा निर्देश और कानून प्रदान करता है।

राष्ट्रीय ध्वज के साथ करणीय और अकरणीय

हमें अपने राष्ट्रीय ध्वज से अपने शरीर को नहीं लपेटना चाहिए। इसको एक वस्त्र यानी कपड़े के रूप में पहनने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा राष्ट्रीय ध्वज को मरोड़ना, फाड़ना आग लगाना, या उस पर पैर रखना या उसे जमीन पर फेंक देना या अपने टेबल पर टेबल क्लाथ की तरह प्रयोग करना इत्यादि बिल्कुल मना है। यानि जहां भी राष्ट्रीय ध्वज का अपमान दिखाई दे वह सब कुछ मना है। इसका प्रयोग सिर्फ उन्हीं स्थानों पर किया जाएगा जहां के लिए नियमानुसार इसकी अनुमति है – जैसे हमारे संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, सरकारी भवनों इत्यादि पर। हम राष्ट्रीय ध्वज का प्रयोग अपने घरों पर 2006 तक नहीं कर सकते थे। लेकिन हरियाणा के एक उद्योगपति की याचिका पर न्यायालय ने निर्णय दिया कि कोई भी भारतीय नागरिक इस ध्वज का प्रयोग अपने घर के ऊपर या अपने संस्थान के ऊपर कर सकता है, बशर्ते वह फ्लैग कोड का पूरी तरह से सम्मान करें।

लेकिन बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 30 दिसंबर 2021 को कानून में परिवर्तित करके सभी एकाधिकार समाप्त कर दिया है। अब राष्ट्रीय ध्वज को कोई भी अपने घर पर फहरा सकता है। अब इसका खादी का होना भी आवश्यक नहीं है। माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी का सपना है कि हर भारतवासी के घर पर 15 अगस्त 2022 को, जब हम “आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहे हैं, भारत का तिरंगा फहराना चाहिए। इसके लिए सरकार ने अनेक संस्थाओं को अलग-अलग आकार का राष्ट्रीय ध्वज बनाने का मानक और प्रशिक्षण दिलाया है। इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी तंत्र भी काम कर रहा है और हम अपनी पसंद की साइज का फ्लैग अपने घर के ऊपर फहरा सकते हैं। 13 अगस्त से 15 अगस्त तक राष्ट्रीय ध्वज को दिन रात फहराया जा सकता है। पहले यह नियम था कि रात को जहां भी राष्टीय ध्वज फहरायेगा वहां फ्लड लाइट का होना आवश्यक है। इसमें बदलाव कर दिया गया है ताकि साधारण नागरिक भी बिना कानूनी अड़चन के इसे दिन रात फहरा सके।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों राष्ट्रीय ध्वज
जब राष्ट्रीय ध्वज को किसी ऐसे समारोह में फहराना होता है जहां बहुत से देशों के राष्ट्रध्वज हैं तो वहां पर सारे देशों के राष्ट्रध्वज एक समान ऊंचाई पर लगाए जाते हैं। यानी उनका धरातल भी समान होता है और जिस पोस्ट पर लगाए जाते हैं उसकी ऊंचाई भी बिल्कुल बराबर होती है। वहां पर कोई बड़ा या छोटा राष्ट्र नहीं होता, बल्कि अल्फाबेटिकल ऑर्डर में सभी देशों के फ्लैग लगाए जाते हैं। अनेक देशों के अलावा यदि संयुक्त राष्ट्र संघ का भी वहां पर ध्वज है तो उसे सबसे दाहिने तरफ लगाया जाता है यानी जब हम उन राष्ट्रीय ध्वज उनको देख रहे हैं तो हमारे सबसे बांयी ओर।

आइये आज़ादी के अमृत महोत्सव में राष्ट्र ध्वज को अपने घरों पर फहरा कर उस स्वप्न को पूरा करें जिसके लिए हमारे वीर सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। परमवीर चक्र महान बलिदानी कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय के उन गौरवान्वित करने वाले ऐतिहासिक शब्दों को याद करें जो उन्होंने कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानियों द्वारा कब्जा की गई अपनी भूमि को छुड़ाने के लिए आक्रमण के ठीक पूर्व कहा था:

“या तो मैं तिरंगा फहराकर लौटूंगा या तिरंगे में लिपटकर, परन्तु मैं लौटूंगा अवश्य।”


मेजर सरस त्रिपाठी

(मेजर सरस त्रिपाठी लेखक, संपादक, स्तंभकार और पूर्व सेनाधिकारी हैं।)

Saras Tripathi

Saras Tripathi is a multifaceted personality having expertise in multiple domains of human endeavors. Excellence has been the hallmark of his accomplishments. He served in the Indian Army for eight years as Commissioned Officer (last rank as Major), A Deputy Secretary (Media) to the Government of India, Human Resource Manager in Central PSU and Manager (Security and Vigilance)/ Airport Manager at IGI airport New Delhi. He last served as Commandant of Raxa Academy of GMR Group (a certified “centre of excellence”) until he decided to quit the position (and all jobs forever) and dedicate himself to motivate youth/professionals and fellow brethren to achieve what they dream of. He left the highly paid job and prestigious position to pursue his passion for freelance-writing and publishing books of national importance. As a motivational speaker he has been training people to achieve their cherished goal in life. Education: He graduated from the University of Allahabad in English Literature, Philosophy and Ancient history/Culture followed by MA (Philosophy) in the year 1989. He has Bachelor and Masters’ degrees in Journalism (B. Journ. and M. Journ) from Sagar University, and PG Diploma in HRD from Pondicherry University. He has been a graded artist at All India Radio. Trainer and Speaker: He has delivered hundreds of lectures/PPT on a variety of subjects relating to self-growth, personality development and topics of national importance. Author: He has authored two books; one each in English (“Holy Sinners: Search of Kashmir”) and Hindi (“Kashmir Mein Atankwaad: AnkhonDekhaSach”) and several articles published in various newspapers/journals. Occasionally, he has been at AIR for discussions and talks.He regularly writes on contemporary subjects for various newspapers/magazines and Social Media platforms. Pragya Matth Publications is a publication house established by authors to protect the author community from unscrupulous, unethical and exploitative commercial publishers. Pragya Matth has been established by an ex-army officer, Major Saras Tripathi After his own bitter experience as an author, with publishers and their unethical business dealings. The publication is managed by a group of authors, academicians and professionals.